Friday, August 20, 2010

इच्छा़

तुम बैठो कुर्सी पर आराम से टेक लगाकर
मैं बैठूँ पैरों के पास
और अपना सिर तुम्हारे घुटनों पर रख लूँ

तुम्हारे घुटने जिस रोशनी से चमकते हैं
मैं उस तिलिस्म को चूम लूँ
मैं उन पाँवों को चूम लूँ
जिन पर तुम्हारी यह प्यारी ताम्बई देह थमी है

लाख के लाल कनफूल और हरा कुर्ता पहने
तुम मुझ पर झुको गुलमोहर बनकर
और मैं एक बच्चे की तरह उचक कर तुम्हारे फूलों को चूम लूँ

इस अड़तीसवें साल में
बस, बस इतनी सी इच्छा रखता हूँ

Saturday, August 7, 2010

जूड़ा

हवा में अँगड़ाई लेती तुम्हारी कलाइयाँ
रचती हैं एक कला
बाँधती हैं कोमल अँधेरे वलय में
मेरे प्यार, मेरी इच्छाओं को

धीरे-धीरे खुलती जाती है
तुम्हा्री गर्दन के नाजुक हल्के झटकों से
जूड़े की ढीली गाँठ
और बह निकलता है
स्याह रेशमी धार का प्रपात

मेरा मन है कि इस झरने के
ठीक नीचे जाकर लेटूँ
और यह ढाँप ले मुझे प्यार और इच्छा के
इस कोमल अँधेरे में

Wednesday, August 4, 2010

ज़ि‍न्दगी खूबसूरत है

(लैंग्संटन ह्यूजे़ज की कविता-'लाइफ इज़ फाइन')

मैं नदी पर गया
किनारे बैठा
और सोचना चाहा पर नहीं सोच पाया
तब कूदा और डूबने लगा

मैं एक बार ऊपर आया और चिल्लाया
दो बार ऊपर आया और चीखा
जो अगर वह पानी इतना ठंडा ना होता
तो मैं डूबकर मर गया होता

मगर यह ठंडा था बहुत ठंडा था

मैंने लिफ्ट ली
और सोलवें माले पहुँचा
अपने बच्चे के बारे में सोचा
और सोचा नीचे कूदने के बारे में

मैं वहाँ खड़ा होकर चिल्लाया
मैं वहाँ खड़ा होकर चीखा
जो अगर यह इतना ऊँचा ना होता
तो मैं कूदकर मर गया होता

मगर यह ऊँचा था बहुत ऊँचा था

तो मैं अब भी जीवित हूँ
मेरा अन्दाजा है मैं जीवित रहूँगा
मैं प्यार के लिए मर गया होता
मगर मैं जन्मा था जीवन के लिए

हालाँकि तुमने मुझे चिल्लाते सुना होगा
और देखा होगा चीखते हुए
मेरे प्यारे बच्चे
जो तुम मुझे मृत देखना चाहते हो
तो मुझे बहुत जिद्दी होना होगा क्योंकि

ज़ि‍न्दगी खूबसूरत है शराब सी खूबसूरत, खूबसूरत, खूबसूरत

(अनुवाद : प्रमोद)

स्पर्श

(ऑक्तादवियो पाज़ की कविता-'टच')

मेरे हाथ
खोलते हैं तुम्हारे अस्तित्व के पर्दों को
पहनाते हैं तुम्हें और अधिक नग्नता की पौषाक
उघाड़ते हैं तुम्हारी देह की कायाओं को

मेरे हाथ
रचते हैं तुम्हा्री देह के लिए दूसरी देह

(अनुवाद : प्रमोद)