मुझे मालूम नहीं था
मैं किसके प्रेम में मारा जाऊँगा
इस शहर, हवा, इन पेड़ों में से किसके
नहीं मालूम था, इनमें कौन एक स्त्री बनकर आएगा
और भर लेगा अपनी बाँहों में
कौन अपने मेघाच्छादित केशों के पर्दे में छुपा लेगा मुझे
कौन अपने प्यारे दुपट्टे की तरह सीने से लगा लेगा मुझे
नहीं मालूम था, कौन
मैं शहर, हवा और पेड़ से आती हुई एक स्त्री की कल्पना में
गुजरता रहा साल दर साल
और तभी तुम आईं
तुम आईं तो इस शहर में भटकने का साथ मिला
और इस तरह तुमने मुझे इस शहर का प्रेम दिया
तुम आईं तो मुझे तुम्हारी गंध मिली
और इस तरह तुमने मुझे इस हवा का प्यार दिया
तुम्हारे ही साथ गुजरकर मैंने पाया इन पेड़ों के घनेपन से गुजरने का सुख
और इस तरह तुमने मुझे इन पेड़ों का अहसास दिया
इस तरह
मैं मारा गया एक स्त्री के प्यार में जो शहर, हवा और पेड़
सब कुछ एक साथ थी
एक स्त्री
जो तुम थीं
Friday, October 15, 2010
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तुमको देखा तो ये ख्याल आया, जिन्दगी घूप तु घना साया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, प्रेमपगी प्रस्तुति।