नींद के हर मैच में रात को हराकर अल सुबह उठ जाती हो
फिर
बच्चे का स्कूल, ऑफिस, कंप्यूटर, मजदूरी, फीस, बिल, सब्जी -मंडी, दूध, किराना, किराया
जैसे अर्थों से गुजरती हुई
एक लुहार बनकर
अपने दिन को मेहनत से
रचती हो कविता की तरह
हर शाम एक आखिरी सोनेट होती है
जिसे जोड़ते हुए इस तरफ चली आती हो
अपने लिए कुछ समय बीनती हुई इन घने पेड़ों के नीचे
उँगलियों में सिगरेट फँसाए
ना जाने अपना कौनसा बिछुड़ा प्यार याद करती
चहल कदमी करती हो
इस तरह तुम्हारे लाल जूतों के निशान उस जगह सड़क के दिल पर उभर आते हैं
इन पेड़ो की डालियाँ ना जाने किस शक में झुकी चली आती हैं
उन निशानों की निशानदेही करने
इन्हे नहीं पता कि कोने के लैंप पोस्ट की लाइट के टुकड़े से
खुद इनकी मुहब्बत के निशां बिखर गए हैं जमीं पर छायाएँ बनकर
आसमान के सितारों को रश्क है तुम्हारी सिगरेट में चमकते सितारे से
वे खुद तुम्हारी उँगलियों मे आकर फँस जाने का ख्वाब देखते हैं
ये सरकंडे अपने सफेद फूलों के साथ
सिर्फ स्वागत में लगी झंडियों की तरह तुम्हारे रास्ते में खड़े होने के सिवा कुछ नहीं कर सकते थे
और मैं तुम्हारे इस अकेलेपन में सिर्फ एक गीत लिख सकता था मुहब्ब्त का
Monday, December 26, 2011
Monday, August 15, 2011
चप्पलें
इन गुलाबी चप्पलों पर
ठीक जहाँ तुम्हारी ऐड़ी रखने में आती है
वहां उनका अक्स इस तरह बन गया है मेरी जान
कि अब चप्पल में चप्पल कम और तुम्हारी एड़ियाँ ज्यादा नज़र आती हैं
घिसकर तिरछे हुए सोल में
जीवन की चढ़ाई इस कदर उभर आई है
फिर भी तुम हो कि जाने कितनी बार
चढ़कर उतर आती हो
रात तनियों के मस्तूल से अपनी नावें बाँध सुस्ताती हैं चप्पलें
और दरवाजे के बाहर चुपचाप लेटी
थककर सोए तुम्हारे पैरों का पता देती हैं
Monday, August 1, 2011
बंद आँखों से दिखने का करिश्मा
प्यार एक जगह है
जिसका भूगोल तुम्हारी स्मृतियों से बना है
याद की गली के पार वो खेत बारिश से तर है
जहाँ हमने चुंबन के धान रोपे हैं
और तब से ही धानी रंग की चमक मेरी आँखों के कोर से झर रही है
इस नुक्कड़ पर लगे इमली के पेड़ के फूल अब मेरी पलकों पर खिलते हैं
और स्वाद तुम्हारे होठों में भरा है
स्वाद के इस खट्टेपन से बंद आँखों को हम ही दिखते हैं
बंद आँखों से दिखने का यह करिश्मा
सिर्फ इन्हीं गलियों में संभव है
जिसका भूगोल तुम्हारी स्मृतियों से बना है
याद की गली के पार वो खेत बारिश से तर है
जहाँ हमने चुंबन के धान रोपे हैं
और तब से ही धानी रंग की चमक मेरी आँखों के कोर से झर रही है
इस नुक्कड़ पर लगे इमली के पेड़ के फूल अब मेरी पलकों पर खिलते हैं
और स्वाद तुम्हारे होठों में भरा है
स्वाद के इस खट्टेपन से बंद आँखों को हम ही दिखते हैं
बंद आँखों से दिखने का यह करिश्मा
सिर्फ इन्हीं गलियों में संभव है
Monday, July 4, 2011
इस प्यास को मुझसे यह रात उधार ले जाती है
मैं केलू की ढँलवाँ छत हूँ
जिस पर ढल-ढलकर बहती रहती हो बारिश के पानी की तरह याद बनकर तुम
देर तक बची रहती है उसकी सीलन मेरे खपरैलों में
किसी भी टुकड़े को सूँघो तो बस वही एक महक उठती है पानी की
गले के नीचे एक प्या़स जगाती हुई
इस प्यास को मुझसे हर रोज यह रात उधार ले जाती है
और जगाती है प्यार में डूबे लोगों के भीतर
और भोर अपनी पीठ की ढलान पर उगाती है सुर्ख केलू के रंग की ढँलवाँ छत
रात से किए प्यार की याद में
जिस पर ढल-ढलकर बहती रहती हो बारिश के पानी की तरह याद बनकर तुम
देर तक बची रहती है उसकी सीलन मेरे खपरैलों में
किसी भी टुकड़े को सूँघो तो बस वही एक महक उठती है पानी की
गले के नीचे एक प्या़स जगाती हुई
इस प्यास को मुझसे हर रोज यह रात उधार ले जाती है
और जगाती है प्यार में डूबे लोगों के भीतर
और भोर अपनी पीठ की ढलान पर उगाती है सुर्ख केलू के रंग की ढँलवाँ छत
रात से किए प्यार की याद में
Thursday, June 2, 2011
वह
उसका चेहरा एक शिलालेख था
जिस पर झुर्रियों की लिपि में उभरी थी
पचहत्तर-अस्सी सालों की कथा
इस लिपी को घर व आसपास के बहुत कम लोग बाँच पाते थे
बस कुछ बच्चों के पास ही वह हुनर बचा था
जो बढ़ती उम्र में ना जाने कब उनका साथ छोड़ सकता था
उसकी चोटी में सरकंडे का एक फूल उग आया था
और अपने लँहगे की कलियों में वह समंदर की लहरें उठाए चलती थी
उसके पोपले मुँह में बहता था इस दुनिया की सबसे मीठी नदी का पानी
हाथ के डंडे से कभी कभी आसमान में टँगी सितारों की घंटियों को हिला दिया करती थी
जिनसे आवाज फिर सारी रात रोशनी बनकर बरसती थी
उसे ना जाने कब इतिहास के किसी ऐसे शिलाखण्ड में तब्दील हो जाना पड़ सकता था
जिसकी लिपि को अभी बाँचा जाना बाकी था
जिस पर झुर्रियों की लिपि में उभरी थी
पचहत्तर-अस्सी सालों की कथा
इस लिपी को घर व आसपास के बहुत कम लोग बाँच पाते थे
बस कुछ बच्चों के पास ही वह हुनर बचा था
जो बढ़ती उम्र में ना जाने कब उनका साथ छोड़ सकता था
उसकी चोटी में सरकंडे का एक फूल उग आया था
और अपने लँहगे की कलियों में वह समंदर की लहरें उठाए चलती थी
उसके पोपले मुँह में बहता था इस दुनिया की सबसे मीठी नदी का पानी
हाथ के डंडे से कभी कभी आसमान में टँगी सितारों की घंटियों को हिला दिया करती थी
जिनसे आवाज फिर सारी रात रोशनी बनकर बरसती थी
उसे ना जाने कब इतिहास के किसी ऐसे शिलाखण्ड में तब्दील हो जाना पड़ सकता था
जिसकी लिपि को अभी बाँचा जाना बाकी था
Thursday, May 19, 2011
एक कहानी आसमान की
आसमान एक बच्चा है
और चाँद उसके मुँह में घुलता हुआ बताशा
वह घुलता जाता है मुँह में हर रोज
और टपकती जाती है लार
फैलती जाती है चाँदनी
घुलते-घुलते एक दिन बीत जाता है बताशा
आसमान फिर मचलता है
रोता हुआ पाँव पटकता है
उसकी माँ रात
फिर कहीं ढूँढ़ती है बताशा इधर उधर कोनों-कुचारों में,
जंगल के गुच्छों में, नदी के नीचे, पहाड़ों के पीछे,
समंदर के डिब्बे में आखिर उसे मिल ही जाता है
तारों भरी थैली में पड़ा एक और बताशा चाँद
जिसे पिछली बार रख दिया था सँभालकर इसीलिए
कि पता था फिर मचलेगा आसमान बताशे के लिए
उसकी एक-एक हरकत से वाकिफ है
लाकर रख देती है मुँह में बताशा
इस तरह कुछ रोज फिर चुप और शांत रहता है आसमान
और चाँद उसके मुँह में घुलता हुआ बताशा
वह घुलता जाता है मुँह में हर रोज
और टपकती जाती है लार
फैलती जाती है चाँदनी
घुलते-घुलते एक दिन बीत जाता है बताशा
आसमान फिर मचलता है
रोता हुआ पाँव पटकता है
उसकी माँ रात
फिर कहीं ढूँढ़ती है बताशा इधर उधर कोनों-कुचारों में,
जंगल के गुच्छों में, नदी के नीचे, पहाड़ों के पीछे,
समंदर के डिब्बे में आखिर उसे मिल ही जाता है
तारों भरी थैली में पड़ा एक और बताशा चाँद
जिसे पिछली बार रख दिया था सँभालकर इसीलिए
कि पता था फिर मचलेगा आसमान बताशे के लिए
उसकी एक-एक हरकत से वाकिफ है
लाकर रख देती है मुँह में बताशा
इस तरह कुछ रोज फिर चुप और शांत रहता है आसमान
हैलो... !
तुम...!
तुम इस पूनम की रात में कहाँ हो मेरी जान!
चाँद की देगची में चढ़ा चाय का पानी
अब तो भाप बनकर उड़ने लगा है
इस पर ढँकी आसमान की तश्तरी पर
भाप की बूँदों के सितारे उभर आए हैं
मैं उन पर अपनी उँगली फिराता हुआ
तुम्हारा अक्स उकेरे जा रहा हूँ
तुम इस पूनम की रात में कहाँ हो मेरी जान!
चाँद की देगची में चढ़ा चाय का पानी
अब तो भाप बनकर उड़ने लगा है
इस पर ढँकी आसमान की तश्तरी पर
भाप की बूँदों के सितारे उभर आए हैं
मैं उन पर अपनी उँगली फिराता हुआ
तुम्हारा अक्स उकेरे जा रहा हूँ
Wednesday, April 20, 2011
कभी कभी भूलना भी याद करना होता है
कभी कभी भूलना भी याद करना होता है
ऐसे ही किसी समय में
जब मैं तुम्हें भूलने की कोशिश में लगा था
वो शायद अप्रेल के आखिरी दिनों की दोपहर रही होगी कोई
मैं इस देह के बीयाबान बन के खयाल में राह भटका था
कि एक गुलमोहर मिला
अपने पूरे नाजोनखरे के साथ
बहुत शर्माया सा
कि सुर्ख होठ थे उसके और ललाई गालों तक फैली थी
मेरे कान के पास आकर बोला
बहुत गुजरे हो मेरी छाँह से
और शाम के झुटपुटे में इस सघनता में
थामा है कोई हाथ गर्माहट भरा कई कई बार
आज बस इतना भर कर दो
इस पड़ौसी अमलतास से मुझे भी मिलवा दो
मेरा हाथ बस उसकी देह से छुआ दो
आज मेरे भीतर भी कुछ उमड़ा है
मैंने एक डाल को पकड़ अमलतास से छुआ भर दिया
कि बस क्या था
अमलतास ने एक आह भरी ठंडी
और उसकी देह से चाँदनी फूटने लगी
जिसके पानी के झिलमिलाते अक्स में
मुझे अपना बहुत कुछ याद आया
ऐसे ही किसी समय में
जब मैं तुम्हें भूलने की कोशिश में लगा था
वो शायद अप्रेल के आखिरी दिनों की दोपहर रही होगी कोई
मैं इस देह के बीयाबान बन के खयाल में राह भटका था
कि एक गुलमोहर मिला
अपने पूरे नाजोनखरे के साथ
बहुत शर्माया सा
कि सुर्ख होठ थे उसके और ललाई गालों तक फैली थी
मेरे कान के पास आकर बोला
बहुत गुजरे हो मेरी छाँह से
और शाम के झुटपुटे में इस सघनता में
थामा है कोई हाथ गर्माहट भरा कई कई बार
आज बस इतना भर कर दो
इस पड़ौसी अमलतास से मुझे भी मिलवा दो
मेरा हाथ बस उसकी देह से छुआ दो
आज मेरे भीतर भी कुछ उमड़ा है
मैंने एक डाल को पकड़ अमलतास से छुआ भर दिया
कि बस क्या था
अमलतास ने एक आह भरी ठंडी
और उसकी देह से चाँदनी फूटने लगी
जिसके पानी के झिलमिलाते अक्स में
मुझे अपना बहुत कुछ याद आया
Tuesday, April 5, 2011
कविता
इस धूप में भी तुम कहाँ से चुरा लाती हो बादल
और छोड़ जाती हो उसे मेरे बिस्तर की सलवटों में
सुबह ख्वाब से उठकर मैं उन सलवटों में
बस तुम्हारी नमी ढूँढ़ता हूँ .
और छोड़ जाती हो उसे मेरे बिस्तर की सलवटों में
सुबह ख्वाब से उठकर मैं उन सलवटों में
बस तुम्हारी नमी ढूँढ़ता हूँ .
Saturday, April 2, 2011
भाषा, मेरी ज़ुबान... मेरा साथ दो (प्रार्थना)
ओ मेरी भाषा!
इस तरह हकलाओ मत
मेरा साथ दो
जब प्यार में इतनी खूबसूरती से साथ दिया
तो अब मत छोड़ो मुझ निरीह को इस तरह वध्य और अकेला
तुम्हें गढ़ने ही होंगे मेरे लिए
कुछ रूपक अकेलेपन के दुख के भी
इन बिछोह के काँच के किरचों पर चलने को भी
तुम्हें ही देनी होगी अभिव्यक्ति
ओ भाषा!
तुम इतना सा और साथ दो मेरा
ओ मेरी ज़ुबान!
जब इतने स्वाद भरे जीवन को तुमने जीया है
तो इन छालों को भी तुम्हें ही सहना होगा.
तुम साथ दो मेरा
ओ मेरी आवाज!
इस दिल को
एक खिलंदड़ गेंद में तुमने ही बदला है
तो अब इसकी उधड़न को भी कहना ही होगा
तुम साथ दो मेरा
इस तरह हकलाओ मत
मेरा साथ दो
जब प्यार में इतनी खूबसूरती से साथ दिया
तो अब मत छोड़ो मुझ निरीह को इस तरह वध्य और अकेला
तुम्हें गढ़ने ही होंगे मेरे लिए
कुछ रूपक अकेलेपन के दुख के भी
इन बिछोह के काँच के किरचों पर चलने को भी
तुम्हें ही देनी होगी अभिव्यक्ति
ओ भाषा!
तुम इतना सा और साथ दो मेरा
ओ मेरी ज़ुबान!
जब इतने स्वाद भरे जीवन को तुमने जीया है
तो इन छालों को भी तुम्हें ही सहना होगा.
तुम साथ दो मेरा
ओ मेरी आवाज!
इस दिल को
एक खिलंदड़ गेंद में तुमने ही बदला है
तो अब इसकी उधड़न को भी कहना ही होगा
तुम साथ दो मेरा
Wednesday, March 2, 2011
मैं एक पेड़
तुम्हारी इच्छा करते-करते
मैं एक पेड़ में बदल गया हूँ
अब इसकी टहनियों पर
आकर अटकती रहती हैं
तुम्हारी यादों की पतंगें
इसकी एक शाख
जो ठीक तुम्हारी बालकनी तक आ पहुँची है
उससे बाँध सकती हो
तुम अपनी निगाह की अलगनी
और डाल सकती हो
प्यार के रंग भरे कपड़े
बचाते हुए सूरज की रोशनी से
या किसी इतवार बाँच सकती हो अखबार
सुबह की चाय के साथ
इसकी पत्तियों को छूते हुए
इसकी छाया के लिए अब कुछ कहना न होगा
उसका तुम मनचाहा कुछ कर सकती हो
और इसकी कलियों की गंध से
महका सकती हो अपनी नींद के ख्वाबों को
मैं एक पेड़ में बदल गया हूँ
अब इसकी टहनियों पर
आकर अटकती रहती हैं
तुम्हारी यादों की पतंगें
इसकी एक शाख
जो ठीक तुम्हारी बालकनी तक आ पहुँची है
उससे बाँध सकती हो
तुम अपनी निगाह की अलगनी
और डाल सकती हो
प्यार के रंग भरे कपड़े
बचाते हुए सूरज की रोशनी से
या किसी इतवार बाँच सकती हो अखबार
सुबह की चाय के साथ
इसकी पत्तियों को छूते हुए
इसकी छाया के लिए अब कुछ कहना न होगा
उसका तुम मनचाहा कुछ कर सकती हो
और इसकी कलियों की गंध से
महका सकती हो अपनी नींद के ख्वाबों को
Friday, January 28, 2011
अभी-अभी तुमने और मैंने ...
अभी-अभी आसमान को डायरी का पहला सफ़हा बनाकर
अपने दस्तख़त के साथ
तुमने मेरे लिए तारा लिपि में कविता लिखी है
मैंने भी तुम्हारे लिए इस नम माटी से
एक दिल बनाया है
तुम आओ
अपने कैनवास 'शू' पहने
उस पर सुन्दर छाप बनाओ
इस नीम से एक टहनी माँगो
उसमें अपनी इच्छाओं के गुब्बारे टाँगो
फिर यहाँ खड़े हो
उड़ाओ बेफिक्री से
अपने दस्तख़त के साथ
तुमने मेरे लिए तारा लिपि में कविता लिखी है
मैंने भी तुम्हारे लिए इस नम माटी से
एक दिल बनाया है
तुम आओ
अपने कैनवास 'शू' पहने
उस पर सुन्दर छाप बनाओ
इस नीम से एक टहनी माँगो
उसमें अपनी इच्छाओं के गुब्बारे टाँगो
फिर यहाँ खड़े हो
उड़ाओ बेफिक्री से
Wednesday, January 19, 2011
नहीं नहीं अब तुम मुझे याद नहीं आती
मेरी जीभ के छोर पर बचा रह गया खारापन
तुम्हारे ही शरीर के समंदर से उपजा था
और अब दौड़ रहा है घुलकर
मेरे रक्त में खलबली मचाता हुआ
वो जो खुश्बू थी तुम्हारे पसीने के इत्र से बनी
अब मेरी सांसों का हिस्सा है
तुम्हारे और मेरे बीच की दूरी और नज़दीकी की नाप का अहसास
गुदा है मेरे इस हृदय पर
तुम्हारे मुझसे उस तरह लिपटकर मिलने से बने निशान
अब भी उभरे हैं इस देह पर
अब इससे ज्यादा मैं और कैसे कहूं
कि नहीं नहीं अब तुम मुझे याद नहीं आती
तुम्हारे ही शरीर के समंदर से उपजा था
और अब दौड़ रहा है घुलकर
मेरे रक्त में खलबली मचाता हुआ
वो जो खुश्बू थी तुम्हारे पसीने के इत्र से बनी
अब मेरी सांसों का हिस्सा है
तुम्हारे और मेरे बीच की दूरी और नज़दीकी की नाप का अहसास
गुदा है मेरे इस हृदय पर
तुम्हारे मुझसे उस तरह लिपटकर मिलने से बने निशान
अब भी उभरे हैं इस देह पर
अब इससे ज्यादा मैं और कैसे कहूं
कि नहीं नहीं अब तुम मुझे याद नहीं आती
Tuesday, January 4, 2011
तुम और मैं
1.
तुम हो दूर एक ख्वाबगाह
मैं हूँ यहाँ पड़ी एक परती जमीन
शुक्र है कि हमारे बीच यह चाँद है
और हम दोनों पर एक साथ पड़ रही है इसकी चाँदनी
2.
तुम पर्दा बनो
और मेरे कंधो के पेलमेट पर लटक जाओ
या कपड़ों की तरह मुझ अटैची में समा जाओ
तुम चाकू भी बन सकती हो
ताकि तरबूज की तरह मुझमें धँस पाओ
या फिर ऐसा करते हैं
मैं अपनी कमीज में दिल के सबसे पास वाला काज बनता हूँ
और तुम बटन बन कर वहाँ टँग जाओ
इस तरह तुम साथ भी रहोगी
और दिल के इतना करीब भी
तुम हो दूर एक ख्वाबगाह
मैं हूँ यहाँ पड़ी एक परती जमीन
शुक्र है कि हमारे बीच यह चाँद है
और हम दोनों पर एक साथ पड़ रही है इसकी चाँदनी
2.
तुम पर्दा बनो
और मेरे कंधो के पेलमेट पर लटक जाओ
या कपड़ों की तरह मुझ अटैची में समा जाओ
तुम चाकू भी बन सकती हो
ताकि तरबूज की तरह मुझमें धँस पाओ
या फिर ऐसा करते हैं
मैं अपनी कमीज में दिल के सबसे पास वाला काज बनता हूँ
और तुम बटन बन कर वहाँ टँग जाओ
इस तरह तुम साथ भी रहोगी
और दिल के इतना करीब भी
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