Wednesday, March 2, 2011

मैं एक पेड़

तुम्हारी इच्छा करते-करते
मैं एक पेड़ में बदल गया हूँ
अब इसकी टहनियों पर
आकर अटकती रहती हैं
तुम्हारी यादों की पतंगें

इसकी एक शाख
जो ठीक तुम्हारी बालकनी तक आ पहुँची है
उससे बाँध सकती हो
तुम अपनी निगाह की अलगनी
और डाल सकती हो
प्यार के रंग भरे कपड़े
बचाते हुए सूरज की रोशनी से
या किसी इतवार बाँच सकती हो अखबार
सुबह की चाय के साथ
इसकी पत्तियों को छूते हुए

इसकी छाया के लिए अब कुछ कहना न होगा
उसका तुम मनचाहा कुछ कर सकती हो
और इसकी कलियों की गंध से
महका सकती हो अपनी नींद के ख्वाबों को

1 comment:

  1. न जाने कितनी यादों की पतंग मेरे पेड़ों पर अटक गयी हैं।

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