Saturday, April 2, 2011

भाषा, मेरी ज़ुबान... मेरा साथ दो (प्रार्थना)

ओ मेरी भाषा!
इस तरह हकलाओ मत
मेरा साथ दो

जब प्यार में इतनी खूबसूरती से साथ दिया
तो अब मत छोड़ो मुझ निरीह को इस तरह वध्य और अकेला
तुम्हें गढ़ने ही होंगे मेरे लिए
कुछ रूपक अकेलेपन के दुख के भी
इन बिछोह के काँच के किरचों पर चलने को भी
तुम्हें ही देनी होगी अभिव्यक्ति
ओ भाषा!
तुम इतना सा और साथ दो मेरा

ओ मेरी ज़ुबान!
जब इतने स्वाद भरे जीवन को तुमने जीया है
तो इन छालों को भी तुम्हें ही सहना होगा.
तुम साथ दो मेरा

ओ मेरी आवाज!
इस दिल को
एक खिलंदड़ गेंद में तुमने ही बदला है
तो अब इसकी उधड़न को भी कहना ही होगा
तुम साथ दो मेरा

1 comment:

  1. मुझे शब्दों पर भरोसा है, साथ नहीं छोड़ेंगे। नया विषय।

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