Tuesday, April 5, 2011

कविता

इस धूप में भी तुम कहाँ से चुरा लाती हो बादल
और छोड़ जाती हो उसे मेरे बिस्तर की सलवटों में
सुबह ख्वाब से उठकर मैं उन सलवटों में
बस तुम्हारी नमी ढूँढ़ता हूँ .

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