Thursday, May 19, 2011

हैलो... !

तुम...!
तुम इस पूनम की रात में कहाँ हो मेरी जान!
चाँद की देगची में चढ़ा चाय का पानी
अब तो भाप बनकर उड़ने लगा है
इस पर ढँकी आसमान की तश्तरी पर
भाप की बूँदों के सितारे उभर आए हैं
मैं उन पर अपनी उँगली फिराता हुआ
तुम्हारा अक्स उकेरे जा रहा हूँ

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