आसमान एक बच्चा है
और चाँद उसके मुँह में घुलता हुआ बताशा
वह घुलता जाता है मुँह में हर रोज
और टपकती जाती है लार
फैलती जाती है चाँदनी
घुलते-घुलते एक दिन बीत जाता है बताशा
आसमान फिर मचलता है
रोता हुआ पाँव पटकता है
उसकी माँ रात
फिर कहीं ढूँढ़ती है बताशा इधर उधर कोनों-कुचारों में,
जंगल के गुच्छों में, नदी के नीचे, पहाड़ों के पीछे,
समंदर के डिब्बे में आखिर उसे मिल ही जाता है
तारों भरी थैली में पड़ा एक और बताशा चाँद
जिसे पिछली बार रख दिया था सँभालकर इसीलिए
कि पता था फिर मचलेगा आसमान बताशे के लिए
उसकी एक-एक हरकत से वाकिफ है
लाकर रख देती है मुँह में बताशा
इस तरह कुछ रोज फिर चुप और शांत रहता है आसमान
Thursday, May 19, 2011
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प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त एक सुन्दर विचार।
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर प्रमोद जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन !
आसमान एक बच्चा है
और चांद उसके मुंह में घुलता हुआ बताशा
अच्छी कल्पना की है आपने …
आपकी अन्य रचनाएं भी यहां पढ़ीं …
आप राजस्थान के हैं यह मेरे लिए और भी प्रसन्नता की बात है ।
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार